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कितने अल्हड़ थे वो
लड़खड़ाते,दीवाने ,मचलते दिन
घड़ी की सुइयों से हटकर
बेपरवाह मस्ती की हस्ती के दिन,
कूदफाँद और भागदौड़
खेल बचपन के चपल सुहाने,
गहरायी तक दिल में बसते
टूटते जुड़ते वो याराने,
पल में लड़ना और झगड़ना
पल पल में वो पक्की यारी
सतरंगी थी बड़ी सुहानी
अपनी नन्हीं दुनिया न्यारी,
जाने कहाँ गए वो दिन ......!!!
कैशौर्य की आह! रंगीं फ़िज़ाएँ
शोख़ी बहुतेरी ले आयी,
बाग़ी सपनों ने ले ली थी
जोश भरी कोमल अँगड़ायी,
अनायास खुद में खो जाना
ना जाने कहाँ गुम हो जाना
बिना बात ही हँसना गाना
सोच सोच यूँ ही मुस्काना,
धड़कन दिल की डूब प्रीत में
मधुरिम मधुरिम गीत सुनाती
अनदेखा अनजाना किंतु
सच्चा कोई मीत बुलाती ,
हाय गुलाबी से वो दिन ...!!!
आयी जवानी सुनो कहानी
जीवन ने ये पत्ते खोले,
लगा ले बाजी इस महफ़िल में
बार बार ये मनुआ बोले,
बेपरवाह रह परिणामों से
हार जीत की क्यूँ कर फिक्र
कौन खेल सका शिद्दत से
उसके कौशल का ही ज़िक्र,
हम बन ना पाए हाय खिलाड़ी
रह गए हो कर निपट अनाड़ी
किन्तु कुशल कहाँ थे हम
पहचान न पाए क्यूँ पगलाए
खुशियों को समझा था ग़म,
कुछ तो सिखा गए वो दिन ....!!!
साथ हमारे चलते चलते
कदम वक़्त ने बढ़ा लिए हैं,
जाने अनजाने उसने तो
पाठ जीस्त के पढ़ा दिए हैं,
दृढ़ पग बढ़ते रहे निरंतर
चलते चलते ठोकर खा कर,
मरहम लगी रिसती चोटों से
सीधी साँची सीखें पा कर
पथ पर हैं अब बढ़े जा रहे
बाहोशी की दौलत ले कर ,
स्पष्टता है राह दिखाती
चले स्वीकार्यता साथी हो कर ,
सिमट गए सब बीते दिन
कहीं नहीं खोये वो दिन .......!!!
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25 -05-2019) को "वक्त" (चर्चा अंक- 3346) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
वाह बेहतरीन रचना
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