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गमक जाती हूँ
सोंधी मिट्टी सी
तेरी यादों की
शीतल फुहार से
वरना
बदगुमानियों ने मेरी
ज़र्रा ए खाक
बना दिया है मुझको.....
हटता नहीं
तेरा एहसास
एक लम्हा भी
मेरे ख़यालों से
हुआ है जादू कोई
फूँका है मंतर
या कोई मख़्फ़ी तावीज़
बंधा दिया है मुझको.....
धड़क रहा है सीने में
बन के दिल
जो शख़्स
हर लम्हा ,
वो मेरा कोई नहीं
दुनिया ने बारहा
बता दिया है मुझको ....
जमी थी बर्फ़
जज़्ब हुए
अश्क़ों की
सर्द से वजूद पर
किस तमाजते सरगोशी ने
दफ़अतन
पिघला दिया है मुझको ......
मायने:
मख़्फ़ी=अदृश्य, छुपा हुआ
बारहा-बार बार
तमाजते सरगोशी - फुसफुसाहट की गर्माहट
दफ़अतन=अचानक
एहसासों के सरगम सज गए हर शब्द में आपकी! ज़ज़्बात अवश से तैरने लगे मन की फ़िज़ा में। वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंउम्दा /बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंएहसासों को झकझोरती गहन अभिव्यक्ति।
आपका शुक्रिया
हटाएंवाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
धन्यवाद
हटाएंधन्यवाद मेरी रचना को चुनने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंवाह!!!