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पद्मनाभ,हे मुरली मनोहर
हृदय पुष्प है तुझको अर्पण
छवि में मोरी छवि है तेरी
जब जब देखूँ दर्पण....
मन खिले पलाश सा माधव
तन सिंदूरी छाया
हैं रक्ताभ कपोल जवा सम
ज्यूँ गुलाल छितराया....
हो प्रत्यक्ष हे!श्याम सांवरे
हरो वेदना मोरी
फागुन बिखरा चहुँ दिसा में
चुनरी मेरी कोरी....
फीकी तुझ बिन होरी कान्हा
रंग न कोई भाये
दरस मिले गोविंदा का जब
नैनन रंग बरसाए.....
द्वैत मिटे अद्वैत घटे अब
रोम रोम हर्षाओ
प्रीत में केशव रंगो स्वयं को
मुझ में तुम ढल जाओ.....
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 01 मार्च 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रीत भरा गीत
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंभाव भक्ति रस छलका !
जवाब देंहटाएंस्वागत है रंगों का !
बहुत सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
मन खिले पलाश सा माधव
जवाब देंहटाएंतन सिंदूरी छाया
हैं रक्ताभ कपोल जवा सम
ज्यूँ गुलाल छितराया....
वाह !बहुत सुन्दर
सादर
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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