रविवार, 4 नवंबर 2018

हर सिम्त तुम ही


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ना जाने मुझको आज सजन
तुम याद बहुत क्यूँ आते हो
बंद करूँ कि अँखियाँ खोलूं मैं
हर सिम्त तुम्ही दिख जाते हो ......

धड़कन धडकन में गूँज रही
बातें मुझसे जो कहते थे
अक्षर अक्षर में डोल रही
जिस प्रीत में हम तुम बहते थे
पढूं तुम्हें या मैं लिख दूं
हर गीत में तुम रच जाते हो.....

लम्हों में युग जी लेते थे
कभी युग बीते ज्यूँ लम्हा हो
मैं साथ तेरे तन्हाई में
तुम बीच सभी के तन्हा हो
दिन मजबूरी के थोड़े हैं
तुम आस यही दे जाते हो....

हर सुबह का सूरज आशा की
चमकीली किरने लाता है
सांझ की लाली में घुल कर
इक प्रेम संदेसा आता है
सूरज ढलने के साथ ही तुम
बन चाँद मेरे आ जाते हो....

हर शै में साजन याद तेरी
तुम बिन हर पल यूँ लगता है
नैनों का भीगा सूनापन
ज्यूँ हृदय गीत बन ढलता है
सात सुरों की सरगम से
तुम अष्टम सुर बन जाते हो .....

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