मन के भावों को यथावत लिख देने के लिए और संचित करने के लिए इस ब्लॉग की शुरुआत हुई...स्वयं की खोज की यात्रा में मिला एक बेहतरीन पड़ाव है यह..
रविवार, 16 सितंबर 2018
बोला-अबोला
बंध गयी हैं हदें
अपने
वक्त-ए-गुफ्तगू की
जबसे
फेर लेती हूँ
तेरी नज़्मों को
तस्बीह के दानों सा ,
और यूँ जप लेती हूँ
हर उस लम्हे को
जो गुज़ारा था
हमने
बोला अबोला
जिसके
पाकीज़ा एहसास,
अनकहे अल्फाज़ से
जन्मी थीं
नज्में बेहद .....
बेहतरीन..
जवाब देंहटाएं