जीवन अपना
जलधि जैसा
अथाह असीम
तरल ज्यूँ नीर,
कहीं चपलता
लहरों जैसी
कहीं बहुत
गहन गम्भीर ,
कहीं शांत है
बिलकुल मौन
कहीं सुरों सम
बजते तीर,
कभी परिपक्व
अबोल धैर्य है
कभी बालक
चंचल अधीर
सरल सहज
भावों का समन्वय
मिलन ,बिछोह
बेताबी ,धीर
कभी खुशी से
बहते आँसू
कभी हँसी बन
झरती पीर.....
जलधि जैसा
अथाह असीम
तरल ज्यूँ नीर,
कहीं चपलता
लहरों जैसी
कहीं बहुत
गहन गम्भीर ,
कहीं शांत है
बिलकुल मौन
कहीं सुरों सम
बजते तीर,
कभी परिपक्व
अबोल धैर्य है
कभी बालक
चंचल अधीर
सरल सहज
भावों का समन्वय
मिलन ,बिछोह
बेताबी ,धीर
कभी खुशी से
बहते आँसू
कभी हँसी बन
झरती पीर.....
बहुत सुंदर भाव भरे हैं आपने इस छोटी सी कविता में..सचमुच जीवन सागर की तरह विशाल है और विरोधाभासों से पूर्ण है..चंचल और धीर एक साथ..
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