सोमवार, 29 जुलाई 2013

तंग नज़र....

तंग नज़र को कैसे सच्ची बात मिलेगी 
रंग खुरचते ही असली औकात मिलेगी ...

ज़ेहन भर डाला है कूड़े करकट से 
बहते दरिया की कैसे सौगात मिलेगी ....

जलन है दिल में,धुआं उठ रहा आँखों में 
बहम में जीते हो ,कैसे बरसात मिलेगी ...

हम गफ़लत में खेल लिए थे इक बाजी
कब तलक हमको यूँ शह और मात मिलेगी !...

इल्म से रोशन गर ना हुआ चराग-ए-खुद 
कदम कदम पर तारीकी की रात मिलेगी ....



तारीकी- अँधेरा 

4 टिप्‍पणियां:

  1. मुदिता जी, हर पंक्ति एक सत्य को उजागर करती है..वाकई हमारा छोटा मन और अहंकार कूड़े कचरे के सिवा कुछ भी नहीं..परमात्मा का प्रकाश पाना हो तो पहले उसे खाली करना होगा

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  2. ज़ेहन भर डाला है कूड़े करकट से
    बहते दरिया की कैसे सौगात मिलेगी ..

    बहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... सच्ची सौगात लेने के लिए खुला मन जरूरी है ...

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