रविवार, 10 फ़रवरी 2013

मौन ....



मौनी अमावस्या पर विशेष : आप सबको इस पावन दिन की शुभकामनाओं सहित

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मौन हूँ मैं
मौन तुम हो
मौन है
सम्पूर्ण सृष्टि ,
मौन
अनाहत नाद
जिससे
जागृत होती
अंतर्दृष्टि ...

शब्द सीमा से परे
भावों की
अभिव्यक्ति
मौन ,
नाम ,पद और काल
तज कर
मौन में मिलता
'मैं कौन '....

मौन
सिंधु से भी गहरा ,
विस्तृत जैसे
निरभ्र व्योम ,
मौन में ही
श्रव्य होता
नाद पहला
दिव्य 'ओम'..

मौन घटित होता
अंतस में ,
नहीं बाह्य 
कारक है
विचलन नहीं फिर
कोलाहल से
परम शांति
धारक है ..

है अनुनाद
मौन का हममें
तभी तरंगें
मिलती हैं .
हृदय तार
झंकारित हो कर
प्रेम की कलियाँ
खिलती हैं .....

मौन हूँ मैं
मौन तुम हो
मौन ही
अस्तित्व अपना,
शाश्वत साथ 
आदि अनंत से
भ्रम नहीं,
न कोई सपना ....

2 टिप्‍पणियां:

  1. मौन
    सिंधु से भी गहरा ,
    विस्तृत जैसे
    निरभ्र व्योम ,
    मौन में ही
    श्रव्य होता
    नाद पहला
    दिव्य 'ओम'..

    साधना के सूत्र बताती सुंदर कविता !

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