गुरुवार, 19 जुलाई 2012

किताब ज़िंदगी की ....

लिख दिए हैं
ज़िन्दगी ने,
सफ़े चाहे -अनचाहे
किताब में
मेरी तुम्हारी ,

पढ़ लिया है
डूब कर
मैंने तुझको
तूने मुझको
आगाज़ से
अंजाम तक,

ये बेजुबान
बेजान अलफ़ाज़
नहीं कह पा रहे
दास्तान
मेरी तुम्हारी ,

आओ ना !
चीर कर
उन सफ़ों को
समा जाएँ
जिल्द में
हम दोनों

हो जाएगी यूँ
मेरे हमनवा !
मुक्कमल
ये किताब
ज़िन्दगी की .....

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