शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

सतत यौवन

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जिज्ञासा अज्ञात की
रखती जीवंत
प्रफुल्ल युवा चेतना,
देह नहीं
मानस पर निर्भर
वृद्धत्व बोध
और वेदना

भ्रम हमारा ,
जानने का
सख्त कर देता हमें
नित नूतन को
ना अपनाना
जीर्ण कर देता हमें ...

जो है जाना ,
जो है देखा
जो अभी तक
ज्ञात है
थम जाते क्यूँ
कदम वहीं पर ?
कितना कुछ
अज्ञात है ....!

घेरे रहता है हमें
अज्ञात हर पल
निराकार,
प्राण आंदोलित
क्यूँ ना होते
सुन के भी
उसकी पुकार....!

चाहिए साहस ,
गवेषण करने को
अज्ञात का ,
किन्तु
सुविधामय,
सुरक्षित
मार्ग है न
ज्ञात का ....!

क्यूँ बने हम
राम से ,
या कृष्ण से
या बुद्ध से
महावीर से !!
हैं अनन्य
जगत में हम
निज सत्व खोजें
धीर से ...


खोज करने में
है जोखिम ,
मान्यताएं ,
टूट जातीं
नित नए
आयाम दिखते
धारणाएं
छूट जातीं .....

साथ ना होता
किसी का
हो अकेले
इस राह तुम
स्व-विवेक
अनुकूल हो कर
चल पड़ो
बेपरवाह तुम ....

उत्साह
सीखने का हो
मन में,
साहस ,हृदय में
भरपूर हो ,
भीड़ का
अनुमोदन नहीं
एकाकी होना
मंज़ूर हो .....

तभी चेतना
निखर उठेगी
प्राण पुष्प
खिल जाएगा ,
उम्र ना होगी
हावी हम पर
सतत यौवन
मिल जाएगा .....

( To Be Young Means Living state of MInd -Thus said OSHO )


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