शनिवार, 3 मार्च 2012

ज़र्रे-ज़र्रे में छिपे हो


########

मेरी सूरत में तुम ही तुम नज़र आते हो मुझे
ज़र्रे-ज़र्रे में छिपे हो औ' सताते हो मुझे ....

लफ्ज़ खामोश हैं और मौसिकी बनी धड़कन
गीत की तरह तुम,दिल में ही गाते हो मुझे....

ऐसे सज धज के ना निकलो यूँ घर से ओ जालिम
मिलने जाते हो रकीबों से ,जलाते हो मुझे ....

ख़्वाब अपने हैं,जिए जा रहे जो हर लम्हे
होंगे इक रोज़ हक़ीक़त ये बताते हो मुझे ....

हुई मदहोश हूँ जब जब भी देखा है तुमको
इश्क के जाम निगाहों से पिलाते हो मुझे....


( हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने की तर्ज़ पर )

5 टिप्‍पणियां: