गुरुवार, 24 नवंबर 2011

अनासक्त प्रेम



समझ कर
मेरे प्रेम को
आसक्ति ,
समझ लेते हो
मेरी अनासक्ति को
विरक्ति मेरी
और
डोलते रहते हो
आसक्ति
और
विरक्ति के
इन दो ध्रुवों के मध्य
पेंडुलम की भांति

जबकि !
होती हूँ मैं
सदैव स्थिर
अपने अनासक्त प्रेम में ,
स्वयं प्रेम हो कर

4 टिप्‍पणियां:

  1. मुदित हूँ.
    पर अब चुप रहूँगा जी.

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  2. मेरे प्रेम को
    आसक्ति ,
    समझ लेते हो
    मेरी अनासक्ति को
    विरक्ति मेरी....न इस पहलू चैन न उस करवट आराम...डोलते रहना ही नियति हो जिसकी

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  3. खूबसूरत शब्दों का ताना बाना बुना है ...

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