शनिवार, 12 नवंबर 2011

काश ऐसा तेरा नज़रिया हो ..



पिघल जाती है दूर
पहाड़ों पर बर्फ
चाय की प्याली से
उठती भाप की
गर्माहट से ,
दूरियां ही
शायद
इस आगोश का
ज़रिया हो ...

उठते हैं
तूफ़ान
चाय की प्याली में
देखो ना ,
मिटटी का
यह बर्तन
मानो
कोई दरिया हो ...

खयाल है मुझे
तेरी
तलब-ओ-जरूरियात का
मेरे हमदम ..
काश ऐसा
तेरा नज़रिया हो ....













4 टिप्‍पणियां:

  1. खयाल है मुझे
    तेरी
    तलब-ओ-जरूरियात का
    मेरे हमदम ..
    काश ऐसा
    तेरा नज़रिया हो ....

    काश! ऐसा तेरा नजरिया हो.

    वाह! क्या बात है मुदिता जी.

    अर्ज का मेरी भी तो ख्याल कीजियेगा जी.

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  2. पिघल जाती है दूर
    पहाड़ों पर बर्फ
    चाय की प्याली से
    उठती भाप की
    गर्माहट से ,
    दूरियां ही
    शायद
    इस आगोश का
    ज़रिया हो ...
    excellent

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