मंगलवार, 26 जुलाई 2011

उड़ गयी बुलबुल...

करीब करीब २ महीने साथ रह कर मेरी बिटिया पिछले हफ्ते अपने कॉलेज चली गयी ....सूने घर को दकेह कर जो एहसास उभरे उन्हें कलमबद्ध करने कि कोशिश की है ...

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उड़ गयी बुलबुल हौले से यूँ
चहक बसी है मेरे मन में
कर गयी सूना, मेरा घोंसला
मौन पसर गया ज्यूँ बन में ..

हंसी से उसकी खिल उठता है
मेरे मन का हर इक कोना
जीती हूँ उसके यौवन में
अपने ही जीवन का सपना
उसके लिए सितारे कितने
जगमग करते हैं अंखियन में
उड़ गयी बुलबुल हौले से यूँ
चहक बसी है मेरे मन में .

सूना आँगन ,सूनी गलियाँ
उसके साथ की याद दिलाएं
भीगी आँखों के मोतियन
अधरों पर मुस्कान सजाएं
क्षणिक कष्ट भी ना हो उसको
दुआ बसी मेरे अँसुवन में
उड़ गयी बुलबुल हौले से यूँ
चहक बसी है मेरे मन में

मेरे मन को जाना- समझा
बन कर उसने कोई सहेली
यही कामना ,नहीं हो जीवन
उसके लिए अबूझ पहेली
खुशियों से भर जाए झोली
रहे क्षोभ ना कुछ जीवन में
उड़ गयी बुलबुल हौले से यूँ
चहक बसी है मेरे मन में

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ...
    बुलबुल को मेरी शुभकामनायें ....

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  2. :):) अभी तो कॉलेज ही गयी है .. जब बुलबुल ( अवनि ) अपना नीड़ बसाने जायेगी तब क्या करोगी ?

    बहुत भावपूर्ण रचना ..

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  3. भावमयी रचना ....बेटी के जाने के साथ उभरी मन की व्यथा को दर्शाती हुई...

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  4. बहुत ही दिल से लिखी गई रचना जिसमें मन के भावों को अभिव्यक्ति मिली है।

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  5. बेटियाँ जब भी जाती हैं .. उदास कर जाती हैं .. मार्मिक शब्दों से जुदाई का रंग लिखा है ...

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  6. ओह! भावुक हो गया आपकी सुन्दर कविता पढकर.
    मेरी बिटिया की शादी अक्टूबर में हुई थी.
    आँखें भर आयीं मेरी

    मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है..

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  7. मेरी छोटी बहन जब अपनी सगाई के बाद आठ महीने घर(इसके पहले हमेशा वो बाहर ही रही) पे रही थी तो माँ को उसकी आदत पड़ गयी थी,...शायद माँ को ये कविता बहुत पसंद आये :) करता हूँ उन्हें फॉरवर्ड :)

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  8. बहुत ही अच्छी रचना. आपके मन के भावो के सहज रूप से प्रस्तुत करती हुई.....
    बेटियाँ जाती है तो बस यादे ही रह जाती है ..

    आभार
    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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