मन के भावों को यथावत लिख देने के लिए और संचित करने के लिए इस ब्लॉग की शुरुआत हुई...स्वयं की खोज की यात्रा में मिला एक बेहतरीन पड़ाव है यह..
गुरुवार, 16 जून 2011
आज कल पाँव ज़मीं पर...
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हथेलियों में भर कर चूमा है जबसे तुमने पाँवों को मेरे , कहते हुए उनको जोड़ा हंसों का , रखा नहीं है धरती पर एक पग भी मैंने .. कैसे मलिन कर दूं छाप होठों की तुम्हारे ..
बोलो ! देखा है ना तभी से तुमने मुझे उड़ते हुए .....
मुदिता जी..................ऐसा उड़ना भी खुश नसीबों को ही मिल पता है...हैं न?..सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंsubhanallah
जवाब देंहटाएंवाह ………कोमल भावो की बहुत ही भीनी सी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंउड़ते उड़ते एक दिन तो धरा पर आना ही होगा...
जवाब देंहटाएंman gadgad ho gaya
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