शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

प्रेम ....

घुल गए हैं
वजूद
एक दूसरे में
जबसे ,
टूट गया है
भ्रम
करने का
प्रेम
तुमको ,
जान गयी हूँ,
नहीं करते हो
प्रेम
तुम भी
मुझसे ....
'कर्ता'
होने का
'अहम् '
बचाए रखता है
मुझमें
और
तुममें
उस
'मैं '
को ,
जो नहीं रह गया है
शेष ,
मध्य हमारे...
घटित हुआ है
प्रेम
वेग में
जिसके
घुल कर
हो गए हैं
हम
प्रेम ..
अपने
अंतःकरण के
गहनतम तल तक
सिर्फ हैं हम
प्रेम ...
और !!
घटित हुआ है
'एकत्व'
उस
परम आत्मा से ...
कारण जिसके हैं
सुवासित
हवाएं
और
रोशन
दिशाएं .....

8 टिप्‍पणियां:

  1. घुल गए हैं
    वजूद
    एक दूसरे में
    जबसे ,
    टूट गया है
    भ्रम
    करने का
    प्रेम
    तुमको ,
    जान गयी हूँ,
    नहीं करते हो
    प्रेम
    तुम भी
    मुझसे ....bahut hi dil ko chhunewali rachna

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  2. गहन चिंतन...प्रेम की अभूतपूर्व अभिव्यक्ति..

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  3. मुदिता जी,
    इश्क मजाजी से इश्क हकीकी तक पहुँचती आप की रचना को ढेरों सलाम.
    अध्यात्म पुट किसी किसी की शायरी में ही नज़र आता है आज कल.
    आप खुशकिस्मत हैं.
    best wishes.

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  4. मुदिता जी,

    ये प्रेम का वो तल है जो विरलों को ही नसीब होता है.......शुभकामनायें आपको|

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  5. कित्ती सुन्दर कविता.. वसंत पंचमी पर ढेर सारी बधाई !!

    _______________________
    'पाखी की दुनिया' में भी तो वसंत आया..

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  6. Hi..

    "Main" aur "tum" main prem kahan hai...
    "Prem" basa hai bas ek "hum" main..
    jab "Ekatva" hai dikhta tab hi..
    "Prem" hai dikhta har ek man main...

    Sundar Kavita...

    Deepak..

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