बुधवार, 19 जनवरी 2011

सतोगुण -(आशु रचना )

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सतोगुण,
रजो गुण
और
तमोगुण
तीनो ही
होते हैं
विद्यमान
मनुष्य
प्रकृति में,
होती है
किन्तु
असमानता ...
आचरण
मनुष्य का
कर देता
है निर्धारित
उसमें
किसकी है
प्रधानता !!
रजो-सतो का
विलय
बनाता
समर्थ को
विनयशील
इस जग में ..
तमो-रजो
बनता
विध्वंसक ..
पहुंचाता
पाताल के
तल में ..
सतो गुण
चेतन का
लक्षण ..
रजो पूजता
भौतिकता को
तमो गुण
जड़ता का द्योतक
समझ ना पाए
परम सत्ता को



8 टिप्‍पणियां:

  1. मुदिता जी,

    इस छोटी रचना में जीवन के यतार्थ को प्रदर्शित कर दिया है ....बहुत सुन्दर|

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  2. गूढ़ को सरलता से प्रस्तुत करना......

    आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

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  3. गीता के ज्ञान को आपने बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है.साधुवाद.
    सच में बहुत ही अच्छी रचना बन पड़ी है.
    आप की कलम को सलाम.
    गीता पे आप की और रचनाओं का इंतज़ार रहेगा.

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  4. छोटी सी कविता में जीवन का गहन दर्शन प्रस्तुत कर दिया..बहुत सुन्दर

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  5. त्रिगुणमयी प्रकृति का सब खेल है !अच्छी विवेचना प्रस्तुत की !
    सुन्दर ,सराहनीय !

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  6. ह्रदय ग्राही ...विचारणीय ....सुन्दर पोस्ट ..शुभकामना

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