मंगलवार, 23 नवंबर 2010

विदा की बेला ....

कुछ समय के लिए घर से दूर हूँ....घर से आते समय इक एहसास था कि अगर दीवारें बोल पाती तो मुझसे क्या कहती.... उन्ही को शब्दों में बाँधा है...

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विदा की बेला...
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हौले से छुआ था
वक्ते-जुदाई मैंने उनको
पूछ बैठी थीं वो-
'अब कब दिखोगी फिर हमको?'

नमी अंतरंग की
उभर सी थी आई,
सिहर उठी मैं,
भीगी स़ी ठंडक थी जो पायी...

थी उग जैसे आई
हर सिम्त ज़ुबानें,
बयाँ हो रहे थे
अजब से कुछ फ़साने...

निगाहें भी जैसे
उभर आयीं थी उन पर,
समेटे सवाल लाखों
बोझिल हुए थे जिन पर.

कौन संवारेगा ,
कौन सजायेगा हमें
नर्म एहसासों का
यकीं दिलाएगा हमें...

सन्नाटे में ढूँढेंगे
हम हँसी तुम्हारी,
खुशबू भी हममें है
बसी तुम्हारी..

सोचा नहीं था
बिन तेरे यूं रहना,
वक्त मुश्किल कभी
पड़ेगा यूं सहना..

तेरे होने से दिल
धड़कता है अपना,
नहीं तो है बेजान बेनूर
हमारा हर सपना..

ना समझो हमें
सिर्फ दीवारें घर की,
रहीं हम गवाह ,
हर पल और पहर की..

समेटा तेरे अश्कों को
दीद-ए-क़फ़स में,
हँसी तेरी शामिल
अपने हर इक नफ़स में...

मकाँ हमसे बनता
भले ही हो सुन्दर
मगर साँस तू ने ही
भरी है इसके अंदर...

फ़र्ज़ अपना मुक्कमल
करने चली इस डगर पे
बदलेगी मकाँ दूजा
एक चहकते घर में


संजोये यादें तेरी सुहानी
बिता देंगे हम भी दिन यूं
लौटेगी जब तू इक दिन
संवारेगी इसको फिर यूं.....

भरे से गले से मैं
कुछ ना कह भी पायी,
तुम्ही पर नहीं भारी
महज़ यह जुदाई...

बंटा मन अब है मेरा
दो दो जगह पर
दिखूं चाहे एक ही
सबको इस सतह पर..

नमी पलकों की
बस समेटी है मन में,
पड़ जाऊं ना कमज़ोर मैं
अगले ही किसी छिन में..

विदा की ये बेला है,
मुस्काओ अरे साथी !
घड़ियाँ बिछोह की बस
आती है और जाती........

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6 टिप्‍पणियां:

  1. भावाभिव्यक्ति बहुत सुन्दर

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  2. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर...........सुन्दर अभिव्यक्ति.........

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  3. मुस्काओ अरे साथी!!
    ये इतने मीठे शब्द हैं...खासकर यहाँ!
    बहुत ज्यादा सुन्दर...
    :

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  4. man ki sookhi tapti ret pat khoob tadap kar barse aapke shabd....


    man geela geela ho gaya

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