मंगलवार, 14 सितंबर 2010

हश्र लम्हों का.....

# # #
प्रतीक्षा
अपेक्षा
समीक्षा
परिभाषा
परीक्षा से
उकता कर
लम्हों में
जीने की
आरज़ू
रखने वाले
जब
अकस्मात
पाए
लम्हों को
जीने के
बजाय ,
प्रतीक्षा को
नजरंदाज
कर
अपेक्षा को
ठुकरा कर
परिभाषाओं की
समीक्षा कर
परीक्षा
लेने लगते हैं
तो
लम्हों के
इस हश्र पर
रो देती हूँ मैं....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें