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वधु संभाले,रूप की गागर
छलकत जाए घूंघट से..
सलज हंसी की खनक कहो
कैसे रुक पाए घूंघट से ....
उमंग तो मन की छल छल छलके
रोम रोम से बन्नी के
नज़रें बोझिल .कम्पित हैं लब
झाँक रहे जो घूंघट से.....
हाथों का कंगना भी खन खन
बज उठता हर धडकन पर
नथनी डोल रही साँसों पर
चमक दिखाती घूंघट से ....
स्वपन अनगिनत हृदय संजोये
मंथर गति से आन रही
प्रियतम द्वार खड़े हैं आ कर
उन्हें निहारे घूंघट से ........
वधु संभाले,रूप की गागर
छलकत जाए घूंघट से..
सलज हंसी की खनक कहो
कैसे रुक पाए घूंघट से ....
उमंग तो मन की छल छल छलके
रोम रोम से बन्नी के
नज़रें बोझिल .कम्पित हैं लब
झाँक रहे जो घूंघट से.....
हाथों का कंगना भी खन खन
बज उठता हर धडकन पर
नथनी डोल रही साँसों पर
चमक दिखाती घूंघट से ....
स्वपन अनगिनत हृदय संजोये
मंथर गति से आन रही
प्रियतम द्वार खड़े हैं आ कर
उन्हें निहारे घूंघट से ........
sundar rachna achhi lagi badhai
जवाब देंहटाएंबढिया लगी अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंsundar rachna
जवाब देंहटाएंमुदिता जी...
जवाब देंहटाएंघूँघट का वृतांत सुहाना...
हर क्षण इसका मान अलग...
प्रियतम संग अगर होते तो..
हो इसकी पहचान अलग...
दीपक....