शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

प्रिये ...(आशु रचना )


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तुम सात समुन्दर पार प्रिये
मैं विरहन तुमको याद करूँ
इक खबर कोई पहुंचा आओ
हर शै से ये फ़रियाद करूँ

ये मेघ तो नहीं बंधे हैं यूँ
जैसे मैं सीमाओं से बंधती
गर पवन के जैसे होती मैं
छू छू कर तुमको मैं गंधती
ये सब तुमसे मिल आते हैं
मैं कैसे दिल आबाद करूँ
इक खबर कोई पहुंचा आओ
हर शै से ये फ़रियाद करूँ

तुम भी तो छुप छुप कर मुझको
खत लिखते हो खत पढते हो
कभी ख़्वाब में मुझको पाते हो
कभी कविताओं में गढते हो
ये प्यार ना कोई बंधन है
जिससे मैं तुम्हें आज़ाद करूँ
इक खबर कोई पहुंचा आओ
हर शै से ये फ़रियाद करूँ
तुम सात समुन्दर पार प्रिये
मैं विरहन तुमको याद करूँ ...




3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर...
    आपने तो मेरी दस्ता बया कर दी है !

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  2. बहुत खूबसूरती से विरह गाथा कही है :):)

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  3. तुम सात समुन्दर पार प्रिये
    मैं विरहन तुमको याद करूँ ...
    मनोदशा का सुन्दर चित्रण

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