सोमवार, 16 अगस्त 2010

तुषार ...(आशु रचना )


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ज्यूँ सागर से
होता है
वाष्पित जल
पा कर
ऊष्मा
सूर्य की .....
यूँही
भाव हृदय के
हो कर
वाष्पित
प्रेम ऊष्मा से
छा जाते हैं
आँखों के आसमां
में
बदली की तरह ...
नहीं मिलता
बरसने को
जब
अनुकूल मौसम
इनको ,
तो ,
आँखों की ये नमी
बनके
तुषार
बिखर जाती है
रिश्ते पर
अपने ....
हूँ प्रतीक्षारत ..
इस सर्द मौसम में ,
धूप के लिए
पिघलाने को
ये तुषार
तेरी
बस एक
तप्त दृष्टि
बहुत है ......

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