शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

बादल और सूरज का खेल...

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आज
प्रारंभ हुई
सुबह,
कुछ
अनोखी
बेजोड़ सी ..
सूरज
और
बादलों में
जैसे
लगी हुई थी
होड़ सी...

हो
रही थी
तीव्र
बारिश,
छाई थी
घटा
घनघोर ..
सूरज भी
आज
आमादा था
चमकने को
पुरजोर ...

सह रहा था
हफ्ते भर से
बादलों की
वह
मनमानी ......
लगता था,
आज,उनमें
ना छुपने की
मन में थी
उसने ठानी...

चमकदार धूप
और
मूसलाधार
बारिश का
ये अद्भुत
तारतम्य ...
चल रहा था
प्रकृति का
जैसे
रास-रंग
कोई रम्य ...

और बन गयी
मैं
दर्शक
इस
अनोखे खेल की ...
अद्भुत प्रतियोगिता
हो रही थी
बादल
और
सूरज
के मेल की ....

कभी लगता
नीर बादलों का
अब
चुक रहा है,
अगले ही पल
दिखता
सूरज
बादलों से
जैसे
रुक रहा है...

तभी
चमत्कृत
हो उठी
अकस्मात
मेरी आँखें,
झिलमिला उठी
हर तरफ़
जैसे
असंख्य
सतरंगी पांखें ...

गुज़र कर
बारिश की
हर बूँद के
अंगों में ...
रौशनी सूरज की
हो रही थी
परावर्तित
सप्त रंगों में ...

सजा रहा था
प्रकृति को
ईश्वर
ज्यूँ
निज हाथों से,
नभ से
धरा तक
सतरंगी
बल्बों को
जैसे,
टांग
दिया था
धागों से .....

समा कर
बूंदों में ,
रौशनी
सूर्य की
लगी थी
रिसने ..
गुज़र कर
उनसे
कर दिया था
हर ज़र्रा
सतरंगा
उसने ....

बिना
हार जीत
का यह खेल
जिसमें
खिल
उठा था
हर सूं
रंग
एकत्व का...
कर गया
अभिभूत
मुझको,
बरस रहा था
नूर इसमें
जैसे
ईश्वरीय
तत्व का...

6 टिप्‍पणियां:

  1. कविता की ज्यादा समझ तो नहीं है पर पढ़कर अच्छा लगा
    अच्छी पंक्तिया है .....
    http://oshotheone.blogspot.com/

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  2. धूप छाँव और बारिश का अद्भुत विवरण दिया है आपने इस रचना में...वाह...
    नीरज

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  3. Hi...

    Eshwar ki har rachna main hi...
    yah ekatv samaya hai....
    jarre jarre main wo rahta...
    yah sab uski maaya hai....

    Deepak...

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  4. Aah...jane kyun yahan se aapka blog hi nahi khul raha tha...:(

    khubsurat khel :)

    Aur baaki rachnayein bhi bahut badhiyaa

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