मंगलवार, 24 अगस्त 2010

दिशा ...(आशु रचना )

अन्धकार है
कितना गहरा
दृष्टि को
सूझे ना कुछ भी,
दिशाहीन सा
भटके राही
भेद कोई
बूझे ना कुछ भी........
दूजों के
अनुभव से चाहे
राह सही
मुझको मिल जाए,
अनजानी
मंज़िल की जानिब
डरते डरते
कदम बढ़ाये........
दिशा मिलेगी
सही तभी जब
खौफ़ न होगा
अनजाने का,
भटकन का डर
त्याग हृदय से
निश्चय
परम सच को
पाने का.........
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