मंगलवार, 17 अगस्त 2010

बोझिल......(आशु रचना )


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मिलन के
पलों को,
जुदाई की
सदियों से
जोड़ने वाला
क्षणों का पुल
अकेले
पार करते हुए
बोझिल
हो उठती हूँ
मैं ....
चलो ना!!
जुदाई की
सदियों तक
चले
हाथों में हाथ लिए
इस पुल पर
और
विदा के
इस क्षण को
संजो कर
गुज़ार दें
उन सदियों को,
पुल के
उस तरफ
घटित
मिलन के
पलों को
देख
अपने
साथ का
एहसास लिए ........

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