सरे-महफ़िल रकीबों की,उन्हें हम आशना समझे
हम उनको देखो क्या समझे थे और वो हमको क्या समझे
अयाँ हो ही गया ,कुछ इस तरह से ,हाल भी उन पर
निगाहों से गुज़र कर दिल के जज्बों का बयां समझे
बिखर उठे हैं हर सूं बन के खुशबू मेरी रातों की
हमीं नादाँ तेरे ख्वाबों को पलकों में निहां समझे
कफस में रहते रहते हो लिए सैयाद से मानूस
रिहाई ठुकरा देने से वो हमको नातवां समझे
वफ़ा का पास न तुझको मेरी ,फिर भी ए जानम
सितम ये क्या ,रकीबों को भी अब तू बा-वफ़ा समझे
हंसी को देख कर उनकी कहीं धोखा न खा जाना
तब्बसुम में छिपे हैं गम ,जिन्हें बस आशना समझे
मिलेंगे ख़ार भी, संग भी ,चलोगे जब मेरी जानिब
नहीं मिलते मोहब्बत के सफर में कहकशां... समझे!!
बहुत सुंदर लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसमझ गये बहोत अच्छा
जवाब देंहटाएंbehad khubsurat... aakhiri sher to bahut hi pyara hua
जवाब देंहटाएंहंसी को देख कर उनकी कहीं धोखा न खा जाना
जवाब देंहटाएंतब्बसुम में छिपे हैं गम ,जिन्हें बस आशना समझे
सारे ही शेर बहुत सुन्दर है...बढ़िया ग़ज़ल
hi..
जवाब देंहटाएंsundar gazal...
Deepak