शनिवार, 15 मई 2010

वह नन्ही सी बच्ची...


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मचल
उठती हूँ
मैं
साथ
होने को
तुम्हारे ..
और
बुजुर्गाना
अंदाज
में तुम
करा देते हो
एहसास
मेरे
बचपने का..
समेट लेती हूँ
सब
आकांक्षाएं
और
शरारतें..
ओढा
देती हूँ
चादर भी
उन्हें
परिपक्वता की ..
किन्तु !!...
मेरे भीतर
बसी
वह
नन्ही सी
बच्ची
जो
बचपन की
मासूमियत
कैशौर्य की
अल्हड़ता
और
यौवन की
मस्ती को
जीना
चाहती है..
यकायक प्रौढ़
नहीं होना
चाहती ...!

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