शनिवार, 8 मई 2010

मत जा मंदिर-(भावानुवाद टैगोर की रचना का )


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गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर की एक रचना का भावानुवाद करने की कोशिश करी है.. आप सब की प्रतिक्रियाएं बतायेंगी कितनी सफलता मिली...गुरुदेव की रचना साथ ही पोस्ट कर रही हूँ....

मत जा मंदिर
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मत जा मंदिर,
पुष्प चढ़ाने
चरणों में
ईश्वर के...
पहले भर ले ,
महक
प्रेम की
हर कोने में
घर के..

मत जा मंदिर,
दिया जलाने
प्रभु मूरत
के आगे...
काट हृदय से,
प्रथम,
बँधे जो
अंधकार
के धागे..

मत जा मंदिर,
झुकाने
सर को
दुआ
प्रभु से करने..
झुक
विनम्र हो
सम्मुख उनके
संग
तेरे जो अपने

मत जा मंदिर,
करने पूजा
घुटनों पर
तू झुक कर
गिरे हुए को
उठा ले
झुक कर
राहों में
तू रुक कर ...

मत जा मंदिर,
क्षमा मांगने
स्व-अपराध की
जगन्नाथ से
क्षमा उनको
पहले कर
दिल से,
तू व्यथित
जिनके
अवघात से
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Poem By Gurudev ...

Go not to the temple to put flowers upon the feet of God,
First fill your own house with the Fragrance of love...

Go not to the temple to light candles before the altar of God,
First remove the darkness of sin from your heart...

Go not to the temple to bow down your head in prayer,
First learn to bow in humility before your fellowmen...

Go not to the temple to pray on bended knees,
First bend down to lift someone who is down-trodden...

Go not to the temple to ask for forgiveness for your sins,
First forgive from your heart those who have sinned against you ...

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