मंगलवार, 4 मई 2010

दया - धरम


#####

जन्म लेती
तितली
थी संघर्षरत
झिल्ली से
बाहर आने को..
कोशिशों के
दौर में
थम गयी
कुछ क्षण
सुस्ताने को

एक दयालु
देख रहा था,
सोच,मदद
कर दूं
तितली की ...
काटी
नश्तर से
दीवारें
उसने
झिल्ली की


गिरी तितली
भूमि पर
जा कर..
नहीं पंख
थे उसके
ताक़तवर
संघर्ष मिला
ना
तन को
उसके..
जो
रक्त देता
पंखों में
भरके

सोच ना पाया
नादान दयालु
ईश्वर तो
है स्वयं
कृपालु
बाधा
जीवन में
देता है
जिससे
प्राणी खुद
लड़ता है
तब ताक़त
आती
तन मन में
सफल होता
वह तभी
जीवन में

व्यर्थ दया
किसी
सक्षम पर
करती नहीं
कोई उपकार
जागृत हो
सदा निश्चित
करना
अपना
दया धरम
व्यवहार








2 टिप्‍पणियां: