गुरुवार, 18 मार्च 2010

बाजी दीप और शलभ की

मेरे मित्र द्वारा रचित 'मेरी पुकार' ने मुझे प्रेरित किया शलभ की बात कहने को॥ और नतीजा ......:)

दो रचनायें जिनमें से पहली मेरे मित्र की लिखी हुई है..और उसके बाद शलभ के भाव मेरे लिखे हुए हैं ..'दीप-तू मुझको ना भरमा ' ..
दोनों रचनाओं का आनंद एक साथ पढने में है इसलिए दोनों एक साथ पोस्ट कर रही हूँ ..

मेरी पुकार ......

# # #
कर कर के
मनुहार
मैं कहता
बारम्बार
सुन ले
मेरी पुकार
शलभ तू
मेरे निकट ना आ........

मुझे प्रपंची
जग कहता है
तू मुझ पर आहें
क्यों भरता है
वृथा दीवाने
क्यों मरता है
यदि चाहता
प्रकाश तू
जा खद्योत से
तनिक मांग ला,
शलभ तू
मेरे निकट ना आ......

है जलन ही
प्राण मेरा
जल जायेगा
छोड़ फेरा
ढूंढ ले तू
अन्य डेरा
प्रेम की पीड़ा
है यदि तो
दूर रह कर
तू अरे गा
शलभ तू
मेरे निकट ना आ......

हुई सुबह
मैं बुझ जाऊँ
बस राख ही तो
बिखरा जाऊं
लौट कर फिर
मैं ना आऊं
शीश बभूत को
लगा बावरे
कर याद
मीत
कोई दीप सा था
शलभ तू
मेरे निकट ना आ.......

(खद्योत=जुगनू)

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दीप...तू मुझको ना भरमा :

##############

तेरी मनुहार में
छुपा प्यार,
ले आता निकट
बारम्बार,
हो जाता मुझको
दुश्वार,
दूर रह पाना तुझसे
दीप..तू मुझको ना भरमा

तर्क नहीं ,
बस प्रेम को समझे
मन का भोला पंछी
जग की आँखों,
मत दिखला तू
अपना रूप प्रपंची
ध्येय नहीं प्रकाश
खद्योत का
प्रीत जुडी है तुझसे
दीप...तू मुझको ना भरमा

जलन को
शीतल कर देता है
प्रेम का
बस एक कतरा ,
सांस सांस पर
नाम है तेरा ,
जलने का
क्या खतरा !!
अपनी धुन की
लय पर सजता
गीत सुना है तुझसे
दीप... तू मुझको ना भरमा

भोर हुई ,
हो गया उजाला
रात मिलन की बीती
दीप शलभ की
लगी थी बाजी
मिल कर हमने जीती
भस्म हुए
हो कर योगित हम
पृथक नहीं मैं तुझसे
दीप...तू मुझको ना भरमा .....



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