मंगलवार, 2 मार्च 2010

दिन -रात-(यिन और यांग)

चाँद का टीका
भाल सजाये
दुल्हन निशा
सजी तारों से,
हो शोभित
सूर्य रथ पर
दूल्हा दिवस
चला आता ..
मिलन होता
रात दिन का
रंग
क्षितिज पर
एकत्व का
खिल जाता .....
दिखते दोनों
भ्रमित जगत को
अस्तित्व पृथक
हो कर...
किन्तु हैं
योगित
सदियों से
यिन और यांग
हो कर....

2 टिप्‍पणियां:

  1. खिल जाता रंग
    क्षितिज पर
    एकत्व का,
    दिखते दोनों
    पृथक अस्तित्व
    किन्तु है
    योगित
    सदियों से
    यिन और यांग
    होकर....


    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  2. Hi,
    Divas aur Nisha ka..
    aikatva hai puraana..
    Es aatmik milan ka..
    Ahsaas hai suhana..

    Kavita ke bhav main jab..
    Ye milan humne dekha..
    Man mugdh sa hua hai..
    Anurag lage seekha..

    "DEEPAK" to jalta rahta..
    Hai "NISHA" ke hi ghar main..
    Aur "DIVAS" to hai rahta..
    Har din "NISHA" ke sang main..

    DEEPAK SHUKLA..

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