शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

वट-वृक्ष

वृक्षों के झुण्ड में
एक पृथक व्यक्तित्व
विराट,वृहद्
सम्पूर्ण..
सुदृढ़ और
गरिमापूर्ण..
अनगिनत जड़ें
जो हो रही थी
एक पृथक
तने में परिवर्तित
देने को
हर शाख को
उसका संबल...
घने पत्तों की
ठंडी छाँव
दे रही थी सुकून
तपते तन
औ मन को
अनुभव और स्नेह
की ऊर्जा का
बना था ऐसा
आभा -मंडल
चहुँ ओर
उस वट-वृक्ष के
हठात देख उसको
मुझे तुम याद आये.......

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