रविवार, 1 नवंबर 2009

अनजाने रिश्ते

कहनी क्या हैं सुननी क्या है
बातें सब जानी पहचानी
दिल से दिल तक आने वाली
कब होती राहें अनजानी

फिर भी मन शब्दों में ढूंढें
तेरे अंतस के भावों को
रिक्त रहे कोई एक कोना
भर न पाए कुछ घावों को

मरहम तेरे स्नेह का लगता
पर इच्छा बढ़ती ही जाए
करूँ प्रतीक्षा पल पल तेरी
नज़र ख्वाब गढ़ती ही जाए

महसूस करूँ हर लम्हा खुद में
ज़हन पर ऐसा है छाया
दिल की धड़कन में,सांसों में
क्या तूने भी मुझको पाया !!!

कैसे कब जुड़ गया ये नाता
न मैं जानू न तू जाने
नाम कोई न होता इनका
रिश्ते ये होते अनजाने

इन रिश्तों को जी कर ही तो
पूरक होते भावः हृदय के
निज से निज का परिचय होता
बनते रस्ते स्वयं उदय के

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा लिखती हैं आप......
    आपकी कलम के लिए आपको बधाई......

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  2. फिर भी मन शब्दों में ढूंढें
    तेरे अंतस के भावों को
    रिक्त रहे कोई एक कोना
    भर न पाए कुछ घावों को
    सच में कुछ घाव कभी नहीं भरते !!

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