सोमवार, 1 जून 2009

दिल की सदा ...

क्यूँ
अचानक
चौंक पड़ती हूँ मैं!!!!
सुनी है
कानों ने
ना कोई
आहट
ना आवाज़
पर
ये दिल ..
कह रहा है
उठ ,
देख ,
आये हैं
वो दर पर ..
पागल है
नादाँ है...
बहलाने
इस जिद्दी को
उठ जाती हूँ
और
देखती हूँ
दरवाज़ा
खोल कर
कि
खड़े हो तुम
महकते
रजनीगंधा
के साथ
दरवाज़े पर
दस्तक
देने को उठे
हाथ लिए..

हतप्रभ सी मैं
दिल की
धडकनों
का
विजय गान
सुनती ,
सोचती
रह जाती हूँ...
क्या
परिमाण
होता है
इस
दिल की सदा
का...
मापा है
क्या
किसी
भौतिक
विज्ञानी ने???

[परिमाण - डेसिबल यूनिट में ... :) ]

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