सोमवार, 1 जून 2009

chetanya

आज जब चेतन हुआ मन
रौशन हुआ जैसे हर इक क्षण

नींद थी वो कितनी गहरी
श्वास थी कुछ ठहरी ठहरी

देख ना पाता था कुछ भी
निज को जाना ना कभी भी

आज आलोकित हैं दिशायें
महकी हुई चंचल हवाएं

तन -औ -मन आनंद छाया
दृष्टा बन जब जग को पाया

ये सफ़र निज की चाहत का
प्रश्न नहीं जग के आहत का

प्रेम सुधा अंतर में बसती
मंथन कर तू खुद की हस्ती

रत्न मिलेंगे इस मंथन से
मुक्त करेंगे हर बंधन से

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