tag:blogger.com,1999:blog-8677941077759110922.post4593710272733660509..comments2024-03-27T12:38:50.758+05:30Comments on एहसास अंतर्मन के: सर-ए-महफिल मेरी दीवानगी यूँ बेज़ुबां रख दी (तरही गज़ल )मुदिताhttp://www.blogger.com/profile/14625528186795380789noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8677941077759110922.post-20836031213945727822011-09-17T13:10:52.326+05:302011-09-17T13:10:52.326+05:30इशारों ही इशारों में ,बयाँ कर डाला हाल-ए-दिल
सर-ए...इशारों ही इशारों में ,बयाँ कर डाला हाल-ए-दिल<br />सर-ए-महफिल मेरी दीवानगी यूँ बेज़ुबां रख दी<br /><br />बेहतरीन प्रस्तुति,मुदिता जी.<br />प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास<br /><br />आप मेरा अनुग्रह स्वीकार कर मेरे <br />ब्लॉग पर आयीं,इसके लिए आभार.<br /><br />आप पुनः आईयेगा,प्लीज.<br />आपका सुन्दर विश्लेशण मेरा <br />मार्ग दर्शक है.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8677941077759110922.post-30953162978743288452011-09-08T13:33:12.028+05:302011-09-08T13:33:12.028+05:30न तुमने लब हिलाए और न मैंने ज़ुबां खोली
घुटन फिर भ...न तुमने लब हिलाए और न मैंने ज़ुबां खोली<br />घुटन फिर भी ,ये किन लफ्ज़ों ने अपने दरमियाँ रख दी <br /><br />गज़ब के भाव भरे हैं ………शानदार गज़ल्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8677941077759110922.post-92069915129879647992011-09-08T13:32:37.900+05:302011-09-08T13:32:37.900+05:30इशारों ही इशारों में ,बयाँ दिल हाल कर डाला
सर-ए-म...इशारों ही इशारों में ,बयाँ दिल हाल कर डाला <br />सर-ए-महफिल मेरी दीवानगी यूँ बेज़ुबां रख दी<br /><br />बहुत उम्दा गजल...बहुत गहरे भाव!Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8677941077759110922.post-41535989931180266882011-09-08T07:18:42.496+05:302011-09-08T07:18:42.496+05:30न तुमने लब हिलाए और न मैंने ज़ुबां खोली
घुटन फिर भ...न तुमने लब हिलाए और न मैंने ज़ुबां खोली<br />घुटन फिर भी ,ये किन लफ्ज़ों ने अपने दरमियाँ रख दी <br />लाजवाब शेर!!बहुत ही सुन्दर गज़ल..!!Nidhihttps://www.blogger.com/profile/07970567336477182703noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8677941077759110922.post-32596675459792279482011-09-07T22:17:54.822+05:302011-09-07T22:17:54.822+05:30नीरज जी
आपका आभार त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के...नीरज जी <br /><br />आपका आभार त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए <br /><br />मैंने ठीक कर दिया है आपके कहे अनुसार <br /><br />शुक्रियामुदिताhttps://www.blogger.com/profile/14625528186795380789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8677941077759110922.post-15604090092501264172011-09-07T18:20:26.689+05:302011-09-07T18:20:26.689+05:30न तुमने लब हिलाए और न मैंने ज़ुबां खोली
घुटन फिर ...न तुमने लब हिलाए और न मैंने ज़ुबां खोली <br />घुटन फिर भी ,ये किन लफ्ज़ों ने अपने दरमियाँ रख दी <br /><br />वाह...बहुत खूब...लेकिन कुछ मिसरों में आपने बहु वचन के साथ भी "दी" रदीफ़ का प्रयोग किया है जैसे आंधियां रख दी, जबकि आंधियां रख दीं होना चाहिए था...इसी तरह तनहाइयाँ रख दी की जगह तन्हैयाँ रख दीं...इसे ठीक कर लें.<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com